Episodios

  • विंध्यवासिनी शक्तिपीठ - मिर्जापुर, उत्तरप्रदेश
    Feb 16 2024
    51 शक्तिपीठों की ये यात्रा आप सबके साथ बहुत ही सुंदर रही, इस पॉडकास्ट के अंतिम एपिसोड में हम चल रहे हैं माता के अंतिम धाम क्योंकि इस स्थान का न कोई आदि है न अंत है. वो अनंता यहां अनंत तक के अपने पूर्ण वास में है. उत्तर प्रदेश की राजधानी से 286 km और लगभग 6 घंटे की दूरी पर और प्रयागराज से 83 km लगभग 1:45 की दूरी में स्थित है मां विंध्यवासिनी शक्तिपीठ. विंध्यवासिनी धाम के द्वारपाल हनुमान बाबा और भैरवनाथ है उनकी आज्ञा के बिना इस क्षेत्र में कोई भी प्रवेश नहीं कर सकता. विंध्य क्षेत्र का वर्णन हमारे कई पौराणिक ग्रंथों में आया है. मार्कंडेय पुराण, मत्स्य पुराण, देवी भागवत, स्कंद पुराण, महाभारत, वामन पुराण, हरिवंश पुराण, राज तरंगिणी, बृहत कथा, कादंबरी और कई तंत्र ग्रंथ में इस स्थान की महिमा का गुणगान किया गया है. पुराणों में विंध्य क्षेत्र का महत्व तपोभूमि के रूप में वर्णित है. इस जागृत शक्तिपीठ की पूरी कहानी सुनिए.
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    20 m
  • यशोर- यशोरेश्वरी शक्तिपीठ - ईश्वरीपुर, बांग्लादेश
    Feb 15 2024
    माता सती का यशोरेश्वरी शक्तिपीठ का अर्थ है जैसोर की देवी, पहले ये पूरा स्थान जैसोर के नाम से ही जाना जाता था, किंतु अब एक जिले तक सिमट कर रह गया है. यहां के स्थानीय हिंदू लोगों की ये कुल देवी है. यहां की शक्ति है मां यशोरेश्वरि और भैरव को चंद्र के नाम से पूजा जाता है. मान्यता है की इस स्थान पर माता की पैरो के तलवे का निपात हुआ था. यशोरेश्वरी शक्तिपीठ में मां की उपासना महाकाली रूप में की जाती है पूरी कहानी के लिए सुनिए हमारा ये एपिसोड.
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    13 m
  • कुंजापुरी देवी शक्तिपीठ - देहरादून, उत्तराखंड
    Feb 14 2024
    देव भूमि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से 55 km और लगभग 1 घंटा 15 min की दूरी पर एक पहाड़ की चोटी पर 1676 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है मां कुंजापुरी देवी शक्तिपीठ जहां माता के (वक्ष) कुंजभाग का निपात हुआ था. यहां की शक्ति है मां कुंजा और शिव यानी भैरव को भैरवनाथ कहते है. यह स्थल अपनी अनुपम सिद्ध शक्तियों के लिए तो जाना ही जाता है. गुलाबी लाल और सफेद रंग का यह मंदिर बहुत ही सुंदर, पहाड़ी घरों जैसा है, इसका शिखर सफेद और लाल रंग का है, जिस पर माता का ध्वज लहरा रहा है. गर्भगृह के प्रवेश पर लिखा है "ओम ह्रीम क्लीम चामुंडाय नमः," मंदिर के गर्भगृह में माता की कोई प्रतिमा नहीं है - वहां एक गड्ढा है - कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहां मां का कुंज भाग गिरा था. यहीं पर मुख्य पूजा की जाती है. यहां पूरा एपिसोड सुनिए.
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    13 m
  • वैष्णों देवी शक्तिपीठ - कटरा, जम्मू
    Feb 13 2024
    सभी शक्तिपीठों में वैष्णों देवी शक्तिपीठ की सबसे अधिक महिमा है क्यूंकि यहाँ माँ महालक्ष्मी, माँ महाकाली, माँ महासरस्वती के तीनों रूप तीन पिण्डियों के रूप में साक्षात् विराजमान है. इनकी सम्मलित शक्ति को ही वैष्णों देवी कहा गया है. जम्मू से कुछ दूर कटरा की त्रिकूट पहाड़ी पर स्थित है वैष्णों देवी शक्तिपीठ. यहां की शक्ति है माँ वैष्णवी और यहाँ के रक्षक और प्रहरी स्वयं शिव रूप हनुमान है जो चिरंजीवी है. कुछ लोगों का मानना है कि इस स्थान पर सती माता का कपाल/खोपड़ी निपात हुआ और कुछ कहते है कि यहाँ दाहिने हाथ का निपात हुआ कहते है कि गर्भजून की गुफा में आज भी मानव आकृति है इस एपिसोड में सुनिए और पाइये इस पवित्र पावन तीर्थ की मानसिक यात्रा का अनुभव.
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    26 m
  • कंकाली ताला मंदिर | देवगर्भा शक्तिपीठ - कंचन नगर, पश्चिम बंगाल
    Feb 5 2024
    पश्चिम बंगाल में शांतिनिकेतन के पास ही बोलपुर में कोपाई नदी के किनारे स्थित है माता का कांची देवगर्भा कंकालिता शक्तिपीठ, माना जाता है कि भगवान शिव के तांडव के समय माता सती के शरीर का कंकाल यहां आकर गिरा, इतने शक्तिशाली प्रभाव के कारण यहां की धरती दब गई, पानी भर गया और एक कुंड का निर्माण हुआ. ये कुंड आज भी यहां स्थित है. माना जाता है कि कुंड के नीचे आज भी मां की अस्थियां स्थित है. कुंड के साथ ही माता का शक्तिपीठ मंदिर स्थापित है. यहां की शक्ति हैं मां देवगर्भा और भैरव को यहां रूरू के नाम से पूजा जाता है. स्थानीय लोग इस पवित्र मंदिर को 'कंकाल बाड़ी' रक्त टोला कंकालेश्वरी मंदिर और कंकाली ताला के नाम से भी पुकारते हैं. इस एपिसोड में सुनिए पुरानी कहानी.
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    8 m
  • माया देवी शक्तिपीठ - हरिद्वार, उत्तराखंड
    Jan 29 2024
    गरुड़ पुराण में इस सृष्टि की 7 मोक्षदायीनी पवित्र नगरियां यानी पुरियां हैं. अयोध्या, मथुरा, माया यानी हरिद्वार, काशी, कांचीपुरम, अवंतिका यानी उज्जैन, द्वारिकापुरी है. इस एपिसोड में चलेंगें प्रजापति दक्ष की राजधानी मायापुरी जो आज का हरिद्वार है. माया देवी शक्तिपीठ जहां देवी सती के हृदय का एक भाग आकर गिरा .कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यहां मां की नाभी गिरी थी इसीलिए ये स्थान ब्रह्मांड का केंद्र है. यहां की शक्ति है माया देवी और भैरव को आनंद भैरव कहा जाता है. माया देवी हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी है. पुरातन काल से ही यहाँ तीन सिद्धपीठ त्रिकोण के रूप में स्थित हैं. त्रिकोण के उत्तरी कोण में मनसा देवी, दक्षिण में शीतला देवी और पूर्वी कोण में चंडी देवी स्थित है. इस त्रिकोण के मध्य में क्षेत्र की अधिष्ठात्री भगवती माया देवी और दक्षिण पार्श्‍व में माया के अधिष्ठाता भगवान शिव श्री दक्षेश्वर महादेव के रूप में स्थित हैं.
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    18 m
  • जयंती जयंता शक्तिपीठ | श्री नर्तियांग दुर्गा मंदिर - जयंतिया पहाड़ी, मेघालय
    Dec 28 2023
    मेघालय की राजधानी शिलांग से लगभग 2 घंटे या 62 km ki दूरी पर जयंतियां हिल्स में स्थित है माता का अत्यंत सुंदर धार्मिक आभा से प्रकाशित जयतेश्वरी शक्तिपीठ जिसे जयंती शक्तिपीठ और नर्तियांग दुर्गा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. शक्तिपीठ मंदिर के पास तीन गुफाएं है जिनमें क्रमशः ब्रह्मा विष्णु और भैरव शिव के मंदिर है यहां महादेव के इस मंदिर में जयंतिया राज के पुराने आयुध और शस्त्र भी संरक्षित करके रखे गए हैं। मुख्य मंदिर मेघालय की पारंपरिक खासी शैली में बना हुआ है. नर्तियांग के इस मंदिर में नवरात्र के दौरान केले के पेड़ को गेंदा के फूल से सजाया जाता है और इसी की पूजा मां दुर्गा के रूप में की जाती है। नवरात्रि की षष्ठी तिथि से नवमी तिथि तक चलने वाले इस त्योहार के अंत में देवी स्वरूप केले के पेड़ को पास की मयतांग नदी में विसर्जित दिया जाता है।
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    13 m
  • त्रिपुरासुन्दरी | त्रिपुरेश्वरी शक्तिपीठ - उदयपुर, त्रिपुरा
    Nov 21 2023
    10 महाविद्याओं में चौथी महाविद्या है मां त्रिपुरसुंदरी, जिन्हें ललिता देवी भी कहा जाता है, इनका स्वरूप 16 वर्ष की कन्या का है जो 16 कलाओं से युक्त है, इसलिए इन्हें षोडशी भी कहते है माँ के अनेकों नाम है ललिता, माहेश्वरी, शक्ति, राजराजेश्वरी। महाविद्याओं में से सबसे मनोहर रूप में पूजी जाने वाली सिद्ध देवी यही हैं। भारत के छोटे से राज्य, त्रिपुरा, में उदयपुर शहर के राधाकिशोरपुर जनपद में स्थित है मां त्रपुरेश्वरी शक्तिपीठ। इस स्थान का नाम इनके नाम पर हुआ है। यहां के भैरव त्रिपुरेश हैं। माना जाता है कि यह मां अपने भक्तों को सुंदरता का वरदान देती है। आइए, इस एपिसोड को पूरा सुनते हैं, जानते हैं कब, किस मौसम में, और कैसे इस पवित्र स्थान को पहुंचा जा सकता है।
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    14 m