FirstPeople.in

De: Vijay Oraon
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  • This "First people.in" is a podcast hosted by Vijay Oraon..will provide daily Updates which is running over india and other parts of the world. Supplement blog " vijayoraon1.blogspot.com " And Website "Firstpeople.in Email @ voraon11@gmail.com
    Vijay Oraon
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Episodios
  • Poetry Segment: अभी किसी नाम से न पुकारना by Vivek Aryan
    Mar 5 2024
    यह कविता शोधार्थी विवेक आर्यन की आवाज में रिकॉर्ड की गई है। विवेक आर्यन पत्रकार, लेखक होने के साथ वर्तमान में केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) से आदिवासी विषय पर शोध कर रहे हैं। यह पॉडकास्ट रूपम मिश्र की कविता "अभी किसी नाम से न पुकारना" पर आधारित है। कविता आप नीचे पढ़ सकते हैं अभी किसी नाम से न पुकारना तुम मुझे पलट कर देखूँगी नहीं हर नाम की एक पहचान है पहचान का एक इतिहास और हर इतिहास कहीं न कहीं रक्त से सना है तुम तो जानते हो मैं रक्त से कितना डरती हूँ अभी वो समय नहीं आया कि जो मुझमें वो हौसला लाए कि मैं रक्त की अल्पनाओं में पैर रखते हुए अँधेरे को पार करूँ अभी वो समय नहीं आया कि चलते हुए कहाँ रुकना है हम एकदम ठीक-ठीक जानते हैं हो सकता है कि एक अँधेरे से निकलकर एक उजाले की ओर चलें और उस उजाले ने छल से अँधेरा पहन रखा हो तुम लौट जाओ अभी मुझे ख़ुद ही ठीक-ठीक पहचान करने दो जीवन की दोराहों का मुझे अभी इसी भीड़ में रहकर देखने दो उस भूमि-भाषा का नीक-नेवर जिसमें मातृ शब्द जुड़ा है और माँ वहीं आजीवन सहमी रहीं मैंने खेत को सिर्फ़ मेड़ों से देखा है मुझे खेत में उतरने दो तुम धैर्य रखो मैं अंततः वहीं मुड़ जाऊँगी जहाँ भूख से रोते हुए बच्चे होंगे जहाँ कमज़ोर थकी हुई, निखिध्द, सूनी आँखों वाली मटमैली स्त्रियाँ होंगी जहाँ कच्ची नींदों से पकी लड़कियाँ हों जो ठौरुक नींद में नहीं जातीं कि अभी घर में कोई काम पड़े तो जगा दी जाऊँगी तुम नहीं जानते ये सारी उम्र आल्हरि नींद के लिए तरसती हैं जहाँ मेहनत करने वाले हाथ होंगे कमज़ोर को सहारा देकर उठाते मन होंगे हम अभी बिछड़ रहे हैं तो क्या एक दूसरे का पता तो जानते हैं जहाँ कटे हुए जंगल के किसी पेड़ की बची जड़ में नमी होगी मैं जान जाऊँगी तुम यहाँ आए थे कोई पाटी जा रही नदी का बैराज जब इतना उदास लगे कि फफक कर रोने का मन करे तो समझूँगी कि तुम्हारा करुण मन यहाँ से तड़प कर गुज़रा है जहाँ हारे हुए असफल लोग मुस्कुराते हुए इंक़लाब के गीत गाते होंगे मैं पहचान लूँगी इसी में कहीं तुम्हारी भी आवाज़ है हम यूँ ही भटकते कभी किसी राह पर फिर से मिलेंगे और रोकर नहीं हँसते हुए अपनी भटकन के क़िस्से कहेंगे। - रूपम मिश्र
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  • Poetry Segment: जो चला जाता है, वो मुड़कर क्यों नहीं आ पाता - एक पहाड़ी
    Mar 4 2024
    जो चला जाता है, वो मुड़कर क्यों नहीं आ पाता।। - कुमकुम (एक पहाड़ी लड़की) दरअसल, कवयित्री का नाम कुमकुम है, कुमकुम बेहद ही मृदुभाषी है। पहाड़ी होने के कारण उनकी भावनाएं भी निखर कर सामने आती है। इस कविता में कवयित्री कुमकुम ने अपनी बेशकीमती शब्द इस पॉडकास्ट चैंनल के माध्यम से व्यक्त की हैं। #pahadiculture #pahadipoet
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    3 m
  • POTO HO: Serengsiya सेरेंगसिया | POTO HO | पोटो हो
    Oct 24 2023
    सेरेंगसिया घाटी पोटो हो POTO HO सेरेंगसिया घाटी में हुए भीषण युद्ध को भी जीतने में अपनी अहम भूमिका निभाएं हैं। इनमें मुख्य हैं - पोटो हो, देवी हो, बोड़ो हो, बुड़ाई हो, नारा हो, पंडुवा हो, भुगनी हो। पोटो हो को इन सभी के नेतृत्वकर्ता के रूप में जाना जाता है। कोल्हान में अलग-अलग जगह पर चल रहे विद्रोह ही आगे चलकर सेरेंगसिया में एक बड़े युद्ध का रूप ले लेता है। सेरेंगसिया घाटी चाईबासा जगन्नाथपुर में मुख्य मार्ग पर है, यह चाईबासा से 29 किलोमीटर और जगन्नाथपुर से 19 किलोमीटर की दूरी पर प्रकृति के गोद में स्थित है। #Poto ho #jharkhand #jharkhandi #freedomfighter
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