• Bachao | Uday Prakash

  • Jul 13 2024
  • Length: 4 mins
  • Podcast

  • Summary

  • बचाओ - उदय प्रकाश


    चिंता करो मूर्द्धन्य 'ष' की

    किसी तरह बचा सको तो बचा लो ‘ङ’

    देखो, कौन चुरा कर लिये चला जा रहा है खड़ी पाई

    और नागरी के सारे अंक

    जाने कहाँ चला गया ऋषियों का “ऋ'

    चली आ रही हैं इस्पात, फाइबर और अज्ञात यौगिक

    धातुओं की तमाम अपरिचित-अभूतपूर्व चीज़ें


    किसी विस्फोट के बादल की तरह हमारे संसार में

    बैटरी का हनुमान उठा रहा है प्लास्टिक का पहाड़

    और बच्चों के हाथों में बोल रही है कोई

    डरावनी चीज़

    डींप...डींप...डींप...

    बचा लो मेरी नानी का पहियोंवाला काठ का नीला घोड़ा

    संभाल कर रखो अपने लटूटू

    पतंगें छुपा दो किसी सुरक्षित जगह पर

    देखो, हिलता है पृथ्वी पर

    अमरूद का अंतिम पेड़

    उड़ते हैं आकाश में पृथ्वी के अंतिम तोते

    बताएँ सारे विद्दान्‌

    मैं कहाँ पर टाँग दूँ अपने दादा की मिरजई

    किस संग्रहालय को भेजूँ पिता का बसूला

    माँ का करधन और बहन के विछुए

    मैं किस सरकार को सौपूँ हिफ़ाज़त के लिए

    मैं अपील करता हूँ राष्ट्रपति से कि

    वे घोषित करें

    खिचड़ी, ठठेरा, मदारी, लोहार, किताब, भड़भूँजा,

    कवि और हाथी को

    विलुप्तप्राय राष्ट्रीय प्राणी

    वैसे खड़ाऊँ, दातुन और पीतल के लोटे को

    बचाने की इतनी सख्त ज़रूरत नहीं है

    रथ, राजकुमारी, धनुष, ढाल और तांत्रिकों के

    संरक्षण के लिए भी ज़रूरी नहीं है कोई क़ानून

    बचाना ही हो तो बचाए जाने चाहिए

    गाँव में खेत, जंगल में पेड़, शहर में हवा,

    पेड़ों में घोंसले, अख़बारों में सच्चाई, राजनीति में

    नैतिकता, प्रशासन में मनुष्यता, दाल में हल्दी

    क्या कुम्हार, धर्मनिरपेक्षता और

    एक-दूसरे पर भरोसे को बचाने के लिए

    नहीं किया जा सकता संविधान में संशोधन

    सरदार जी, आप तो बचाइए अपनी पगड़ी

    और पंजाब का टप्पा

    मुल्ला जी, उर्दू के बाद आप फ़िक्र करें कोरमे के शोरबे का

    ज़ायका बचाने की

    इधर मैं एक बार फिर करता हूँ प्रयत्न

    कि बच सके तो बच जाए हिंदी में समकालीन कविता।


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