Bikhre Moti  By  cover art

Bikhre Moti

By: Vivek Prakash
  • Summary

  • Introducing "Bikhre Moti" - A Captivating Hindi Poetry and Storytelling Podcast Playlist. Welcome to "Bikhre Moti," a soul-stirring podcast playlist that celebrates the richness of Hindi literature through mesmerizing poems and captivating stories. Immerse yourself in the enchanting world of renowned poets like Ramdhari Singh Dinkar, Atal Bihari Bajpayee, and dive into the fascinating tales of Panchatantra, Akbar-Birbal, and more. With each episode, we bring you a treasure trove of emotions, wisdom, and entertainment, expertly curated to evoke nostalgia and inspire the mind.
    Vivek Prakash
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Episodes
  • 'Baapu' by Ramdhari Singh Dinkar Ji.
    Jun 3 2023

    संसार पूजता जिन्हें तिलक,
    रोली, फूलों के हारों से ,
    मैं उन्हें पूजता आया हूँ
    बापू ! अब तक अंगारों से
    अंगार,विभूषण यह उनका
    विद्युत पीकर जो आते हैं
    ऊँघती शिखाओं की लौ में
    चेतना नई भर जाते हैं .
    उनका किरीट जो भंग हुआ
    करते प्रचंड हुंकारों से
    रोशनी छिटकती है जग में
    जिनके शोणित के धारों से .
    झेलते वह्नि के वारों को
    जो तेजस्वी बन वह्नि प्रखर
    सहते हीं नहीं दिया करते
    विष का प्रचंड विष से उत्तर .
    अंगार हार उनका, जिनकी
    सुन हाँक समय रुक जाता है
    आदेश जिधर, का देते हैं
    इतिहास उधर झुक जाता है
    अंगार हार उनका की मृत्यु ही
    जिनकी आग उगलती है
    सदियों तक जिनकी सही
    हवा के वक्षस्थल पर जलती है .
    पर तू इन सबसे परे ; देख
    तुझको अंगार लजाते हैं,
    मेरे उद्वेलित-जलित गीत
    सामने नहीं हों पाते हैं .
    तू कालोदधि का महास्तम्भ,आत्मा के नभ का तुंग केतु .
    बापू ! तू मर्त्य,अमर्त्य ,स्वर्ग,पृथ्वी,भू, नभ का महा सेतु .
    तेरा विराट यह रूप कल्पना पट पर नहीं समाता है .
    जितना कुछ कहूँ मगर, कहने को शेष बहुत रह जाता है .
    लज्जित मेरे अंगार; तिलक माला भी यदि ले आऊँ मैं.
    किस भांति उठूँ इतना ऊपर? मस्तक कैसे छू पाँऊं मैं .
    ग्रीवा तक हाथ न जा सकते, उँगलियाँ न छू सकती ललाट .
    वामन की पूजा किस प्रकार, पहुँचे तुम तक मानव,विराट .

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    14 mins
  • Jo Beet Gayi so baat Gayi by Harivansh Rai Bachchan
    Jun 3 2023

    जो बीत गई सो बात गई
    जीवन में एक सितारा था
    माना वह बेहद प्यारा था
    वह डूब गया तो डूब गया
    अम्बर के आनन को देखो
    कितने इसके तारे टूटे
    कितने इसके प्यारे छूटे
    जो छूट गए फिर कहाँ मिले
    पर बोलो टूटे तारों पर
    कब अम्बर शोक मनाता है
    जो बीत गई सो बात गई
    जीवन में वह था एक कुसुम
    थे उसपर नित्य निछावर तुम
    वह सूख गया तो सूख गया
    मधुवन की छाती को देखो
    सूखी कितनी इसकी कलियाँ
    मुर्झाई कितनी वल्लरियाँ
    जो मुर्झाई फिर कहाँ खिली
    पर बोलो सूखे फूलों पर
    कब मधुवन शोर मचाता है
    जो बीत गई सो बात गई
    जीवन में मधु का प्याला था
    तुमने तन मन दे डाला था
    वह टूट गया तो टूट गया
    मदिरालय का आँगन देखो
    कितने प्याले हिल जाते हैं
    गिर मिट्टी में मिल जाते हैं
    जो गिरते हैं कब उठतें हैं
    पर बोलो टूटे प्यालों पर
    कब मदिरालय पछताता है
    जो बीत गई सो बात गई
    मृदु मिटटी के हैं बने हुए
    मधु घट फूटा ही करते हैं
    लघु जीवन लेकर आए हैं
    प्याले टूटा ही करते हैं
    फिर भी मदिरालय के अन्दर
    मधु के घट हैं मधु प्याले हैं
    जो मादकता के मारे हैं
    वे मधु लूटा ही करते हैं
    वह कच्चा पीने वाला है
    जिसकी ममता घट प्यालों पर
    जो सच्चे मधु से जला हुआ
    कब रोता है चिल्लाता है
    जो बीत गई सो बात गई

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    2 mins
  • Krishna ki Chetavani by Ramdhari Singh Dinkar Ji. Audio by Vivek Prakash.
    Jun 3 2023
    वर्षों तक वन में घूम-घूम,बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,पांडव आये कुछ और निखर।सौभाग्य न सब दिन सोता है,देखें, आगे क्या होता है।मैत्री की राह बताने को,सबको सुमार्ग पर लाने को,दुर्योधन को समझाने को,भीषण विध्वंस बचाने को,भगवान् हस्तिनापुर आये,पांडव का संदेशा लाये।‘दो न्याय अगर तो आधा दो,पर, इसमें भी यदि बाधा हो,तो दे दो केवल पाँच ग्राम,रक्खो अपनी धरती तमाम।हम वहीं खुशी से खायेंगे,परिजन पर असि न उठायेंगे!दुर्योधन वह भी दे ना सका,आशीष समाज की ले न सका,उलटे, हरि को बाँधने चला,जो था असाध्य, साधने चला।जब नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है।हरि ने भीषण हुंकार किया,अपना स्वरूप-विस्तार किया,डगमग-डगमग दिग्गज डोले,भगवान् कुपित होकर बोले-‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे।यह देख, गगन मुझमें लय है,यह देख, पवन मुझमें लय है,मुझमें विलीन झंकार सकल,मुझमें लय है संसार सकल।अमरत्व फूलता है मुझमें,संहार झूलता है मुझमें।‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल,भूमंडल वक्षस्थल विशाल,भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,सब हैं मेरे मुख के अन्दर।‘दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर।शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।‘शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,शत कोटि जिष्णु, जलपति, धनेश,शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,शत कोटि दण्डधर लोकपाल।जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,हाँ-हाँ दुर्योधन! बाँध इन्हें।‘भूलोक, अतल, पाताल देख,गत और अनागत काल देख,यह देख जगत का आदि-सृजन,यह देख, महाभारत का रण,मृतकों से पटी हुई भू है,पहचान, इसमें कहाँ तू है।‘अम्बर में कुन्तल-जाल देख,पद के नीचे पाताल देख,मुट्ठी में तीनों काल देख,मेरा स्वरूप विकराल देख।सब जन्म मुझी से पाते हैं,फिर लौट मुझी में आते हैं।‘जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,साँसों में पाता जन्म पवन,पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,हँसने लगती है सृष्टि उधर!मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,छा जाता चारों ओर मरण।‘बाँधने मुझे तो आया है,जंजीर बड़ी क्या लाया है?यदि मुझे बाँधना चाहे मन,पहले तो बाँध अनन्त गगन।सूने को साध न सकता है,वह मुझे बाँध कब सकता है?‘हित-वचन नहीं तूने माना,मैत्री का ...
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    5 mins

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