• लोभी सियार (Covetous jackal)

  • Dec 1 2022
  • Length: 5 mins
  • Podcast

लोभी सियार (Covetous jackal)  By  cover art

लोभी सियार (Covetous jackal)

  • Summary

  • अर्थात् जिसके भाग्य में जितना लिखा होता है उसे उतना ही मिलता है, देखो कैसे अकेले बैल के मारे जाने की आशा में सियार को पन्द्रह वर्षों तक भटकना पड़ा। किसी जंगल में तीक्ष्णशृंग नामक एक बैल रहता था वह अपनी शक्ति के नशे में चूर होकर अपने झुण्ड से अलग हो गया था और अकेला ही घूमता रहता था। हरी-हरी घास खाता, ठण्डा जल पीता और अपने तीख़े सींगों से खेलता रहता था। उसी जंगल में अपनी पत्नी के साथ एक लोभी सियार भी रहता था। नदी के तट पर जल पीने आए उस बैल को देखकर उसकी पत्नी कहने लगी, “यह अकेला बैल कब तक जीवित रह पाएगा? जाओ, तुम इस बैल का पीछा करो। अब जाकर हमें कोई अच्छा गोश्त खाने को मिलेगा।” सियार बोला, “अरे मुझे यहीं बैठा रहने दो। जल पीने के लिए आने वाले चूहों को खाकर ही हम दोनों अपनी भूख मिटा लेंगे। जो हमें मिल नहीं सकता उसके पीछे भागना मूर्खता होती है।” सियारिन बोली, “तुम मुझे भाग्य से मिले थोड़े-बहुत पर ही सन्तुष्ट होने वाले आलसी लगते हो। अगर तुम अपना आलस छोड़ कर और पूरे ध्यान से इस बैल का पीछा करोगे तो हमें अवश्य ही सफलता हासिल होगी। तुम भले ही मत जाओ, मैं तो जा रही हूँ।”
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