Episodes

  • Akaal Aur Uske Baad | Nagarjun
    Jul 16 2024

    अकाल और उसके बाद | नागार्जुन


    कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास

    कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास

    कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त

    कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त

    दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद

    धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद

    चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद

    कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद


    Show more Show less
    2 mins
  • Santaan Saate | Nilesh Raghuvanshi
    Jul 15 2024

    संतान साते - नीलेश रघुवंशी


    माँ परिक्रमा कर रही होगी पेड़ की

    हम परिक्रमा कर रहे हैं पराये शहर की

    जहाँ हमारी इच्छाएँ दबती ही जा रही हैं ।

    सात पुए और सात पूड़ियाँ थाल में सजाकर

    रखी होंगी नौ चूड़ियाँ

    आठ बहन और एक भाई की ख़ुशहाली

    और लंबी आयु

    पेड़ की परिक्रमा करते

    कभी नहीं थके माँ के पाँव।

    माँ नहीं समझ सकी कभी

    जब माँग रही होती है वह दुआ

    हम सब थक चुके होते हैं जीवन से।

    माँ के थाल में सजी होंगी

    सात पूड़ियाँ और सात पुए

    पूजा में बेख़बर माँ नहीं जानती

    उसकी दो बेटियाँ

    पराये शहर में भूखी होंगी

    सबसे छोटी और लाड़ली बेटी

    जिसके नाम की पूड़ी

    इठला रही होगी माँ के थाल में

    पूड़ी खाने की इच्छा को दबा रही होती है ।

    Show more Show less
    2 mins
  • Jo Hua Vo Hua Kis Liye | Nida Fazli
    Jul 14 2024

    जो हुआ वो हुआ किसलिए | निदा फ़ाज़ली


    जो हुआ वो हुआ किसलिए

    हो गया तो गिला किसलिए


    काम तो हैं ज़मीं पर बहुत

    आसमाँ पर ख़ुदा किसलिए


    एक ही थी सुकूँ की जगह

    घर में ये आइना किसलिए

    Show more Show less
    1 min
  • Bachao | Uday Prakash
    Jul 13 2024

    बचाओ - उदय प्रकाश


    चिंता करो मूर्द्धन्य 'ष' की

    किसी तरह बचा सको तो बचा लो ‘ङ’

    देखो, कौन चुरा कर लिये चला जा रहा है खड़ी पाई

    और नागरी के सारे अंक

    जाने कहाँ चला गया ऋषियों का “ऋ'

    चली आ रही हैं इस्पात, फाइबर और अज्ञात यौगिक

    धातुओं की तमाम अपरिचित-अभूतपूर्व चीज़ें


    किसी विस्फोट के बादल की तरह हमारे संसार में

    बैटरी का हनुमान उठा रहा है प्लास्टिक का पहाड़

    और बच्चों के हाथों में बोल रही है कोई

    डरावनी चीज़

    डींप...डींप...डींप...

    बचा लो मेरी नानी का पहियोंवाला काठ का नीला घोड़ा

    संभाल कर रखो अपने लटूटू

    पतंगें छुपा दो किसी सुरक्षित जगह पर

    देखो, हिलता है पृथ्वी पर

    अमरूद का अंतिम पेड़

    उड़ते हैं आकाश में पृथ्वी के अंतिम तोते

    बताएँ सारे विद्दान्‌

    मैं कहाँ पर टाँग दूँ अपने दादा की मिरजई

    किस संग्रहालय को भेजूँ पिता का बसूला

    माँ का करधन और बहन के विछुए

    मैं किस सरकार को सौपूँ हिफ़ाज़त के लिए

    मैं अपील करता हूँ राष्ट्रपति से कि

    वे घोषित करें

    खिचड़ी, ठठेरा, मदारी, लोहार, किताब, भड़भूँजा,

    कवि और हाथी को

    विलुप्तप्राय राष्ट्रीय प्राणी

    वैसे खड़ाऊँ, दातुन और पीतल के लोटे को

    बचाने की इतनी सख्त ज़रूरत नहीं है

    रथ, राजकुमारी, धनुष, ढाल और तांत्रिकों के

    संरक्षण के लिए भी ज़रूरी नहीं है कोई क़ानून

    बचाना ही हो तो बचाए जाने चाहिए

    गाँव में खेत, जंगल में पेड़, शहर में हवा,

    पेड़ों में घोंसले, अख़बारों में सच्चाई, राजनीति में

    नैतिकता, प्रशासन में मनुष्यता, दाल में हल्दी

    क्या कुम्हार, धर्मनिरपेक्षता और

    एक-दूसरे पर भरोसे को बचाने के लिए

    नहीं किया जा सकता संविधान में संशोधन

    सरदार जी, आप तो बचाइए अपनी पगड़ी

    और पंजाब का टप्पा

    मुल्ला जी, उर्दू के बाद आप फ़िक्र करें कोरमे के शोरबे का

    ज़ायका बचाने की

    इधर मैं एक बार फिर करता हूँ प्रयत्न

    कि बच सके तो बच जाए हिंदी में समकालीन कविता।


    Show more Show less
    4 mins
  • Jab Main Tera Geet Likhne Lagi
    Jul 12 2024

    जब मैं तेरा गीत लिखने लगी/अमृता प्रीतम


    मेरे शहर ने जब तेरे कदम छुए

    सितारों की मुट्ठियाँ भरकर

    आसमान ने निछावर कर दीं


    दिल के घाट पर मेला जुड़ा ,

    ज्यूँ रातें रेशम की परियां

    पाँत बाँध कर आई......


    जब मैं तेरा गीत लिखने लगी

    काग़ज़ के ऊपर उभर आईं

    केसर की लकीरें


    सूरज ने आज मेहंदी घोली

    हथेलियों पर रंग गई,

    हमारी दोनों की तकदीरें


    Show more Show less
    2 mins
  • Telephone Par Pita Ki Awaz | Nilesh Raghuvanshi
    Jul 11 2024

    टेलीफ़ोन पर पिता की आवाज़ - नीलेश रघुवंशी


    टेलीफ़ोन पर

    थरथराती है पिता की आवाज़

    दिये की लौ की तरह काँपती-सी।

    दूर से आती हुई

    छिपाये बेचैनी और दुख।

    टेलीफ़ोन के तार से गुज़रती हुई

    कोसती खीझती

    इस आधुनिक उपकरण पर।

    तारों की तरह टिमटिमाती

    टूटती-जुड़ती-सी आवाज़।

    कितना सुखद

    पिता को सुनना टेलीफ़ोन पर

    पहले-पहल कैसे पकड़ा होगा पिता ने टेलीफ़ोन।

    कड़कती बिजली-सी पिता की आवाज़

    कैसी सहमी-सहमी-सी टेलीफ़ोन पर।

    बनते-बिगड़ते बुलबुलों की तरह

    आवाज़ पिता की भर्राई हुई

    पकड़े रहे होंगे

    टेलीफ़ोन देर तक

    अपने ही बच्चों से

    दूर से बातें करते पिता।

    Show more Show less
    2 mins
  • Saamya | Naresh Saxena
    Jul 10 2024

    साम्य | नरेश सक्सेना

    समुद्र के निर्जन विस्तार को देखकर
    वैसा ही डर लगता है
    जैसा रेगिस्तान को देखकर
    समुद्र और रेगिस्तान में अजीब साम्य है
    दोनों ही होते हें विशाल
    लहरों से भरे हुए
    और दोनों ही
    भटके हुए आदमी को मारते हैं
    प्यासा।

    Show more Show less
    2 mins
  • Nani Ki Kahani Mein Devraj Indra | Arunabh Saurabh
    Jul 9 2024

    नानी की कहानी में देवराज इन्द्र - अरुणाभ सौरभ


    कठोरतम तप से

    किसी साधक को

    मिलने लगेगी सिद्धि

    तो आपका स्वर्ग सिंहासन

    डोल जाएगा देवराज

    बचपन में आपसे

    नानी की कहानियों में

    मिलता रहा हूँ

    जवान हुआ तो समझा

    कि सबसे सुंदरतम दुनिया की अप्सराएँ

    सबसे मादक पेय

    और अमरत्व

    आपके अधीन

    जहाँ प्रवेश अत्यंत कठिन है

    मरणोपरांत

    पर हरेक हंदय में

    स्वर्ग की चाहना- कामना - इच्छा अपार

    तिसपर एकक्षत्र राज प्रभो!

    नानी को गए बरसों बीत गए

    पता नहीं उस स्वर्ग में

    बुढ़िया को जगह थोड़ी

    मिली कि नहीं

    जिसकी हर कहानी में

    कमजोर, लाचार और मोहग्रस्त पाया आपको

    कि जिसके पास

    सबसे विशाल

    सुंदरतम दुनिया

    कठोरतम अस्त्र हो

    वह महानतम कायर होता है

    इस एकमात्र बड़ी सीख के लिए

    आपको सदैव प्रणाम

    इन्द्रदेव!


    Show more Show less
    2 mins