Pratidin Ek Kavita  Por  arte de portada

Pratidin Ek Kavita

De: Nayi Dhara Radio
  • Resumen

  • कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
    Nayi Dhara Radio
    Más Menos
activate_primeday_promo_in_buybox_DT
Episodios
  • Bahut dinon ke baad | Nagarjun
    Jun 30 2024

    बहुत दिनों के बाद | नागार्जुन


    बहुत दिनों के बाद

    अबकी मैंने जी भर देखी

    पकी-सुनहली फ़सलों की मुस्कान

    - बहुत दिनों के बाद

    बहुत दिनों के बाद

    अबकी मैं जी भर सुन पाया

    धान कूटती किशोरियों की कोकिलकंठी तान

    - बहुत दिनों के बाद

    बहुत दिनों के बाद

    अबकी मैंने जी भर सूँघे

    मौलसिरी के ढेर-ढेर-से ताज़े-टटके फूल

    - बहुत दिनों के बाद

    बहुत दिनों के बाद

    अबकी मैं जी भर छू पाया

    अपनी गँवई पगडंडी की चंदनवर्णी धूल

    - बहुत दिनों के बाद

    बहुत दिनों के बाद

    अबकी मैंने जी भर तालमखाना खाया

    गन्ने चूसे जी भर

    -बहुत दिनों के बाद

    बहुत दिनों के बाद

    अबकी मैंने जी भर भोगे

    गंध-रूप-रस-शब्द-स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर

    - बहुत दिनों के बाद


    Más Menos
    2 m
  • Uth Jaag Musafir | Vanshidhar Shukla
    Jun 29 2024

    उठ जाग मुसाफ़िर | वंशीधर शुक्ल


    उठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई,

    अब रैन कहाँ जो सोवत है।

    जो सोवत है सो खोवत है,

    जो जागत है सो पावत है।

    उठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई,

    अब रैन कहाँ जो सोवत है।

    टुक नींद से अँखियाँ खोल ज़रा

    पल अपने प्रभु से ध्यान लगा,

    यह प्रीति करन की रीति नहीं

    जग जागत है, तू सोवत है।

    तू जाग जगत की देख उड़न,

    जग जागा तेरे बंद नयन,

    यह जन जाग्रति की बेला है,

    तू नींद की गठरी ढोवत है।

    लड़ना वीरों का पेशा है,

    इसमें कुछ भी न अंदेशा है;

    तू किस ग़फ़लत में पड़ा-पड़ा

    आलस में जीवन खोवत है।

    है आज़ादी ही लक्ष्य तेरा,

    उसमें अब देर लगा न ज़रा;

    जब सारी दुनिया जाग उठी

    तू सिर खुजलावत रोवत है।

    उठ जाग मुसाफ़िर! भोर भई

    अब रैन कहाँ जो सोवत है।

    Más Menos
    2 m
  • Maut Ik Geet Raat Gaati Thi | Firaq Gorakhpuri
    Jun 28 2024

    मौत इक गीत रात गाती थी

    ज़िन्दगी झूम झूम जाती थी

    ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में

    तेरी तस्वीर उतरती जाती थी


    वो तिरा ग़म हो या ग़म-ए-आफ़ाक़

    शम्मअ सी दिल में झिलमिलाती थी


    ज़िन्दगी को रह-ए-मोहब्बत में

    मौत ख़ुद रौशनी दिखाती थी

    जल्वा-गर हो रहा था कोई उधर

    धूप इधर फीकी पड़ती जाती थी

    ज़िन्दगी ख़ुद को राह-ए-हस्ती में

    कारवाँ कारवाँ छुपाती थी


    हमा-तन-गोशा ज़िन्दगी थी फ़िराक़

    मौत धीमे सुरों में गाती थी


    Más Menos
    2 m

Lo que los oyentes dicen sobre Pratidin Ek Kavita

Calificaciones medias de los clientes

Reseñas - Selecciona las pestañas a continuación para cambiar el origen de las reseñas.